मित्रता शुद्धतम प्रेम है , ये प्रेम का सर्वोच्च रूप है, जहाँ कुछ भी नहीं माँगा जाता , कोई शर्त नहीं होती जहां बस, देने में आनंद आता है | OSHO
हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमे बसेंगे.